कविता – यादों के अवशेष
सभ्यताओं का चेहरा
तुम्हारे जैसा होता है
जिसमें होते हैं
मेहनत के अवशेष
होती है वो गूढ़ भाषा
जिसे समझा जाना मुश्किल है
होते हैं वो दुख भरे अनुभव
जैसे ढहा देती है प्रकृति
किसी सभ्यता को
बस एक अंतर है
तुम में और सभ्यता में
सभ्यता आती है
चली जाती है
लेकिन तुम एक बार आते हो
और फिर यह प्रक्रिया
दोहराई नहीं जाती
और बच जाते हैं
तुम्हारे मेरे बीच
यादों के वो अवशेष.
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कवयित्री द्वारा इस कविता को पूर्ण रूप से स्वयं का बताया गया है। ओर हमारे पास इसके पुक्ते रिकॉर्ड्स है। कवयित्री ने स्वयं माना है यह कविता उन्होंने किसी ओर वेबसाइट पर प्रकाशित नहीं करवाई है।
रचयिता –नीतू कोटनालाविद्यार्थी, दिल्ली विश्वविद्यालय.
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