मै भारत की बेटी हूँ
कभी कुचल दी जाती हूँ
कभी मसल दी जाती हूँ
कभी पेड़ पे लटकी तो कभी कब्ब्र पे बैठी हूँ
हाँ मै भारत की बेटी हूँ
कभी जुए में हारि जाती हूँ
कभी कोख में मारी जाती हूँ
झूठ है की मई सबकी चहेती हूँ
हाँ मै भारत की बेटी हूँ
कभी अग्नि परीक्षा ली जाती है ,
कभी दहेज़ की आग में जली जाती है
जीते जी मैं चिटा पे लेती हूँ
हाँ मै भारत की बेटी हूँ
हर तरफ मेरे लिए बुरी दृष्टि है
जबकी मैं रहती हूं नव सृष्टि
सृजन हेतु खुद दाव पर रख देती हूं
हाँ मै भारत की बेटी हूँ
मैं भी अब बेखौफ रहूंगी
अब और ज़ुल्म नहीं सहूंगी
दुर्गा काली सी सृस्टि खुद में समेटी हूँ
हाँ मै भारत की बेटी हूँ
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कवि द्वारा इस कविता को पूर्ण रूप से स्वयं का बताया गया है। ओर हमारे पास इसके पुक्ते रिकॉर्ड्स है। कवि ने स्वयं माना है यह कविता उन्होंने किसी ओर वेबसाइट पर प्रकाशित नहीं करवाई है।
लेखक: Praveen vishwakarma
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