कविता – मै खुद की हीनता से जन्मा मृत हूं
मुझे भगवान मत कहो
मुझे राक्षस मत कहो
मत कहो मुझे इंसान भी
मै वो हूं
जिसे मैंने खुद ही बनाया है
अपनी सोच से,अपने क्रोध से
अपनी अज्ञानता से
अपनी हीनता से
मै हत्यारा हूं
अपने आप का
असंख्य जीवों का,
अनगिनत भ्रूणों का
सुनसान सड़क पर जाती अकेली लड़कियों का
वीरान में रह रहे बुज़ुर्ग दंपत्तियों का
नवजात शिशुओं का जिन्हें तड़पाने में सुकून मिलता है
मै तेज धार हूं
अपनी आंखो से चीर देता हूं छोटी बच्चियों,लड़कियों
और जवान औरतों के कपड़े
और महसुसू करता हूं अपनी टांगों के बीच
उत्तेजित होती अपनी मर्दानगी को
और घुस जाता हूं उनके मदनालय में
बलातपूर्वक कभी सरिया लेकर,कभी सीसे
की बोतल लेकर,कभी ईंट,बालू और कंक्रीट लेकर
लड़कियां अवसर नहीं जिम्मेदारी है
परन्तु मेरे लिए अवसर है
मुझसे सहा नहीं जाता खिलखिताली हुई लड़कियों
की आवाज,बच्चो की मासूमियत
और आजाद औरतें
ये सब मुझे प्रोत्साहित करती हैं
कुछ बुरा,बहुत बुरा करने को
मै वो हूं जिसे
पुलिस, प्रशासन और
समाज के रखवाले ढूंढते है
परन्तु खोज नहीं पाते है
मै वो हूं जिस पर समाज थूकता है
जिस पर पूरा खानदान शर्मिंदा है
मै गिरगिट हूं,मै भेड़िया हूं
मै लोगो के बीच अच्छा हूं, सच्चा हूं
एकांत में,रात में और अवसर पर
मै रावण से भी क्रूर हूं
मै वहीं हूं जिसे
इंडियन प्रीडेटर कहते है
मुझे डर नहीं किसी का
न जेल का, न फांसी का,
न अपने लिंग को काटे जाने का
मै मानसिक कचरे में भिनभिना रहे
कीड़ों का सरदार हूं
मै खुद की हीनता से जन्मा मृत हूं।
कवि द्वारा इस कविता को पूर्ण रूप से स्वयं का बताया गया है। ओर हमारे पास इसके पुक्ते रिकॉर्ड्स है। कवि ने स्वयं माना है यह कविता उन्होंने किसी ओर वेबसाइट पर प्रकाशित नहीं करवाई है।
लेखक: धीरज”प्रीतो”
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