नन्हा परिंदा |
कविता- नन्हा परिंदा
वो नन्हा सा परिंदा देख रहा था मुझे,
बेबसी में बोल कर कह रहा था मुझे।
मैं आज बोल नही सकता भाषा तुम्हारी,
पर आज जान की लगी है बाज़ी हमारी।
मैं मानता हूँ आज शक्ति नही हमारे पास,
पर सर्वशक्तिशाली परमात्मा है हमारे साथ।
वो हज़ारों हज़ारों आँखों से देखता है तुम्हे,
वो परमेश्वर हर गुनाहों की सज़ा देगा तुम्हे।
मैं अब तुम्हे कुछ कहूँगा नही कट जाऊँगा,
ये अधूरा है किस्सा मैं फिर यही आऊँगा।
यही कहानी फिर से दोहराई जाएगी,
मेरे ही हाथो तुम्हारी गर्दन उतरी जाएगी।।
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कवि द्वारा इस कविता को पूर्ण रूप से स्वयं का बताया गया है। ओर हमारे पास इसके पुक्ते रिकॉर्ड्स है। कवि ने स्वयं माना है यह कविता उन्होंने किसी ओर वेबसाइट पर प्रकाशित नहीं करवाई है।
लेखक: Raman kumar
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