कविता – क्या कहेंगे लोग | Kya Kahenge Log kavita

Reading Time: 2 minutes


कविता – क्या कहेंगे लोग

बढ़ता जा रहा यह रोग : 
“क्या कहेंगे लोग ?” 
लोगों तो काम हैं कहना,
अपना भी काम है सुनना
सुनकर उन बातों को, 
दिल पर न लगाना,
यही है सच्चा फरमाना ॥

बार-बार यह सोच लगाता है, 
हमारे बढ़ते कदम पर रोक
कि ‘क्या कहेंगे लोग ?”

खुद की सुनना, कुछ सोचना 
न करना उन बातों पर गौर । 
समय के साथ कदम बढ़ाते जाना
हर यह प्रश्न काँटते जाना कि “क्या कहेंगे लोग? “

ना भटकना मंजिल कभी, 
उन बातों को सोच । 
डगमगाएँ कदम जब भी, 
खड़े होना यह सोच 
कि मिटाना है सबसे बड़ा रोग । 
जिस दिन मिलेगी मंजिल तुम्हें, 
उस दिन जड़ से खत्म होगा यह रोग,
कि “क्या कहेंगे लोग ?”
————————–

कवियत्री द्वारा इस कविता को पूर्ण रूप से स्वयं का बताया गया है। ओर हमारे पास इसके पुक्ते रिकॉर्ड्स है। कवियत्री ने स्वयं माना है यह कविता उन्होंने किसी ओर वेबसाइट पर प्रकाशित नहीं करवाई है।

कवियत्री:  Pranci Singh

इस कविता के बारे में अपने विचार comment करके हमें ज़रूर बताएं और अपने साथियों तक इसे अवश्य पहुंचाए ।

और हिंदी अंश को विजिट करते रहें।  

_________________

अपनी कविता प्रकाशित करवाएं

Mail us on – Hindiansh@gmail.com

0 thoughts on “कविता – क्या कहेंगे लोग | Kya Kahenge Log kavita”

Leave a Comment