अपनी सुरक्षा आप ही सीखो
हरा भरा बरगद का पत्ता,
झूले हवा संग लय से नाचता,
बालकनी में लटकी टहनियां।
उस पर बैठी छोटी सी चिड़िया।
गोरे-गोरे उजले पर की!
रुई के गोले सी चिड़िया।
भूल गयी थी थी शायद रास्ता!
जिस घोंसले से थी बावस्ता।
मातपिता खो गए हैं उसके?
या सीखा के उड़ना छोड़ गए वो।
सोचा सीखा इसने अब जीना?
हो गया पूरा फ़र्ज़ अब अपना।
छोटी चिड़िया भोली चिड़िया,
पूरे भरे पंखों वाली चिड़िया।
कैसे अब उनको समझाएं!
अपना दुखड़ा किसे सुनाये,
सीखा उड़ना उसके पंखों ने!
पर उसका मन अभी भी बच्चा।
पेट तो उसका भर जाता है,
दिन उजाला जब कर जाता है,,
पर काली अंधेरी रात सताती!
अनजाने भय से कपकपाती,
छिपी बना पत्तों की आड़ वो!
सहमी करे इंतजार सुबह का।
देखो बच्चों तुम भी समझों
मात पिता की बात को मानों।
बिना बताए कहीं मत निकलो,
अपनी सुरक्षा आप ही सीखो।।
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कवियत्री द्वारा इस कविता को पूर्ण रूप से स्वयं का बताया गया है। ओर हमारे पास इसके पुक्ते रिकॉर्ड्स है। कवियत्री ने स्वयं माना है यह कविता उन्होंने किसी ओर वेबसाइट पर प्रकाशित नहीं करवाई है।
कवियत्री: सारिका चौरसिया’सजल’
मिर्ज़ापुर उत्तर प्रदेश।।
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